Thursday 10 November 2011

झूठ को ये सच कभी कहते नहीं

झूठ को ये सच कभी कहते नहीं
टूट कर भी आइने डरते नहीं

हो गुलों की रंगो खुशबू अलहदा
पर जड़ों में फ़र्क तो दिखते नहीं

जिनके पहलू में धरी तलवार हो
फूल उनके हाथों में जँचते नहीं

अब शहर में घूमते हैं शान से
जंगलों में भेड़िये मिलते नहीं

साँप से तुलना न कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं

कुछ की होंगीं तूने भी गुस्ताखियाँ
ख़ार अपने आप तो चुभते नहीं

बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मरज़ी से कभी चलते नहीं

फल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं

ख़्वाहिशें नीरज बहुत सी दिलमें हैं
ये अलग है बात की कहते नहीं


रचनाकार - मा० नीरज गोस्वामी  जी

Thursday 3 November 2011

घाव जो देते वही उपचार की बातें करें

तीर खंजर की न अब तलवार की बातें करें
जिन्दगी में आइये बस प्यार की बातें करें


टूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा
अब बचाने को उसी घर -बार की बातें करें


थक चुके हैं हम बढ़ा कर यार दिल की दूरियाँ
छोड़ कर तकरार अब मनुहार की बातें करें


दौड़ते फिरते रहें पर ये ज़रुरी है कभी
बैठ कर कुछ गीत की झंकार की बातें करें


तितलियों की बात हो या फिर गुलों की बात हो
क्या जरूरी है कि हरदम खार की बातें करें


कोई समझा ही नहीं फितरत यहाँ इन्सान की
घाव जो देते वही उपचार की बातें करें


काश 'नीरज' हो हमारा भी जिगर इतना बड़ा
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें


रचनाकार ----- नीरज गोस्वामी

उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें

उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
कुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें


जो नचाती हमें थीं भुला सारे ग़म
याद करते ही तुझको बजी वो धुनें


पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें


वक्त ने जो उधेड़े हसीं ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें


सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें


जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
तन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें


अब रिआया समझदार 'नीरज' हुई
हुक्मरां बंद वादों के कर झुनझुनें






रचनाकार ---- नीरज गोस्वामी