उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
कुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें
जो नचाती हमें थीं भुला सारे ग़म
याद करते ही तुझको बजी वो धुनें
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
वक्त ने जो उधेड़े हसीं ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें
जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
तन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें
अब रिआया समझदार 'नीरज' हुई
हुक्मरां बंद वादों के कर झुनझुनें
कुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें
जो नचाती हमें थीं भुला सारे ग़म
याद करते ही तुझको बजी वो धुनें
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
वक्त ने जो उधेड़े हसीं ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें
जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
तन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें
अब रिआया समझदार 'नीरज' हुई
हुक्मरां बंद वादों के कर झुनझुनें
रचनाकार ---- नीरज गोस्वामी
2 comments:
bahut khub bhupendra ji
suresh
sundar rachna neeraj ji ki
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