अँधेरों से कब तक नहाते रहेंगे ।
हमें ख़्वाब कब तक ये आते रहेंगे ।
हमें पूछना सिर्फ़ इतना है कब तक,
वो सहरा में दरिया बहाते रहेंगे ।
ख़ुदा न करे गिर पड़े कोई, कब तक,
वे गढ्ढों पे चादर बिछाते रहेंगे ।
बहुत सब्र हममें अभी भी है बाक़ी,
हमें आप क्या आजमाते रहेंगे ।
कहा पेड़ ने आशियानों से कब तक,
ये तूफ़ान हमको मिटाते रहेंगे ।
गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’
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हमें पूछना सिर्फ़ इतना है कब तक,
वो सहरा में दरिया बहाते रहेंगे ।
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वे गढ्ढों पे चादर बिछाते रहेंगे ।
बहुत सब्र हममें अभी भी है बाक़ी,
हमें आप क्या आजमाते रहेंगे ।
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ये तूफ़ान हमको मिटाते रहेंगे ।
गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’
2 comments:
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Dietrich Huberstrauken
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