Thursday 8 September 2011

अक्सर हम भूल जाते है

अक्सर हम भूल जाते हैं चाबियाँ
जो किसी खजाने की नहीं होती
अक्सर रह जाता है हमारा कलम
किसी अनजान के पास
जिससे वह नहीं लिखेगा कविता

अक्सर हम भूल जाते हैं
उन मित्रों के टेलीफ़ोन नंबर
जिनसे हम रोज़ मिलते है
डायरी में मिलते है
उन के टेलीफ़ोन नंबर
जिन्हें हम कभी फ़ोन नहीं करते

अक्सर हम भूल जाते हैं
रिश्तेदारों के बदले हुए पते
याद रहती है रिश्तेदारी

अक्सर याद नहीं रहते
पुरानी अभिनेत्रियों के नाम
याद रहते है उनके चेहरे

अक्सर हम भूल जाते हैं
पत्नियों द्वारा बताये काम
याद रहती है बच्चों की फरमाइश

हम किसी दिन नहीं भूलते
सुबह दफ़्तर जाना
शाम को बुद्धुओं की तरह
घर लौट आना


गोविन्द माथुर

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